अब तो कविता लिखने का मूड हो गयो है तुम जो, भिखारी बन ,हाथ कटोरा लिये हो। जनता की मार खा कर भी चुनाव लड़ रहे हो उम्मीद थी सब को पांसे पलटने की ,पांसे वही शकुनी की जगह ,जनता चल रही थी चाल सब। जीत कर तुम कर बढ़ा रहे हो कुर्सी पर तुम यूं मुस्करा रहो हो । अनिल कुमार सोनी
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